Sunday 29 July 2012

खेलों में जेंडर जांच:सवाल दर सवाल


लन्दन ओलम्पिक्स की शानदार शुरुआत हो गयी है ,मगर एक समान्तर खेल और खेला जा रहा है .सेक्स की जांच का खेल .पहले कई पुरुष खिलाड़ी जनाना भेष में ओलम्पिक मेडल तक हथियाते रहे हैं .खेलों में जेंडर जांच की जरुरत इसलिए ही आन पडी ताकि ऐसे छलिया लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया जा सके ...१९५० से लेकर किसी न किसी रूप में जेंडर जांच २००९ तक बदस्तूर जारी रही .मेडिकल साईंस के उन्नत होने के साथ ही शक के मामलों में खिलाड़ियों के सेक्स के गुणसूत्रों को भी देखा जाने लगा .हम सभी जानते हैं कि एक्स एक्स लैंगिक गुणसूत्र महिलाओं तथा एक्स वाई गुणसूत्र पुरुष के होते हैं .इसके साथ बार बाडी भी देखी जाने लगी जो महिलाओं के मामले मेंप्रत्येक कोशिका के  नाभिक के परत के अंदरुनी हिस्से से जुदा एक धब्बा दीखता है जो एक निष्क्रिय गुणसूत्र एक्स की पहचान बताता है .अब चूंकि महिलाओं में दो एक्स सेक्स गुणसूत्र होते हैं तो एक निष्क्रिय रहता है जबकि पुरुष में एक एक्स सक्रिय होता है तो वह जांच में धब्बा सरीखा नहीं दीखता .मगर ये जांच भी विवादित होते गए ...क्योंकि लैंगिक गुणसूत्रों के में भी विकार पाए जाते हैं .जैसे किसी महिला में दो एक्स के साथ एक वाई भी मिल गया या महज एक ही एक्स गुणसूत्र दिखा -या पुरुष एक्स वाई के साथ एक और एक्स आ गया आदि आदि .लैंगिक गुणसूत्रों के इसी गडबडझाले की वजह से २००९ से ही ओलम्पिक असोसिएशन ने इन लैंगिक गुणसूत्रों की जांच पर रोक लगा दी .
पिछले वर्ष   दक्षिण अफ्रीकी धाविका कैस्टर सेमेन्या का मामला भी विवादित रहा था .पहले तो उन्हें ओलम्पिक असोसिएशन ने खेलने से मना किया मगर बाद में अनुमति मिल गयी .रंगभेद लिंगभेद पर पक्षपात की दुहाईयाँ दी गयीं ,यद्यपि उनकी लैंगिक जांच आज भी सार्वजनिक नहीं हुयी .यहाँ भारत में पिंकी प्रामाणिक का मामला चल ही रहा है ..अदालत ने उनके गुणसूत्रों की जांच का आदेश दिया है .खेल प्रेमियों को इसका बेसब्री से इंतज़ार है . इंटरनेशनल ओलम्पिक कमेटी ने अब से टेस्टोस्टेरान जिसे पुरुष हारमोन भी कह देते हैं के स्तर की जांच का नया मानदंड रख दिया है .यदि किसी महिला खिलाड़ी में इस हारमोन का स्तर एक सीमा से ज्यादा हुआ तो वह महिला प्रतिस्पर्धी के रूप में खेल से बाहर होगी -इस स्तर का निर्धारण विशेषज्ञ करेगें -मतलब अभी भी यह तरीका बहुत पारदर्शी नहीं है .हाँ कहा गया है कि महिला खिलाड़ियों में यह हारमोन पुरुष खिलाड़ियों के स्तर तक नहीं होना चाहिए . 
महिलाओं की एक जन्मजात स्थिति   " कान्जेनायिटल एड्रीनल हायिपरप्लासिया" उनके  बही जनन अंगों में विकृतियों का कारण बनती है और उनकी भगनासा अविकसित नर अंग जैसी लगती है .अब इनकी बाह्य जांच में बड़ी दुविधा उत्पन्न हो सकती है यद्यपि इनमें आंतरिक लैंगिक अंग गर्भाशय और अंडाशय पाए जाते हैं .इसी तरह एक अन्य मामले में एक्स वाई गुणसूत्रों के बावजूद "एंड्रोजेन इन्सेंसिविटी सिंड्रोम " में जेनेटिक तौर पर पुरुष होने के बाद नारी बाह्य अंगों का विकास हो जाता है -उभरे स्तन,अविकसित नारी जननांग मगर अंडाशय और गर्भाशय नदारद .हाँ टेस्टिस पाया जाता है . ऐसे लोगों का शरीर पुरुष हारमोन के प्रति असंवेदनशील रहता है . अब इन्हें किस कटेगरी में रख जाय . 
अब खेलों में टेस्टोस्टेरान के जांच का पैमाना कहाँ तक निरापद और विवादहीन रहेगा यह देखा जाना है . ओलम्पिक कमेटी यह समझती है कि चूंकि यही हारमोन खिलाड़ियों के परफार्मेंस में उनकी शक्ति क्षमता और गति से सीधे जुड़ा है इसलिए इसकी जांच से खेलों के मैदान में बराबरी का स्तर(लेवल प्लेयिंग फील्ड)  बनाए रखा जा सकता है . वैसे इस जांच को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं .कहा जा रहा है कि अनेक ऐसे मामले हैं जिनमें टेस्टोस्टेरान स्तर कम होने पर भी खिलाड़ियों ने अच्छे प्रदर्शन किये हैं और मेडल जीते हैं . क्या लैंगिक जांच का एक पूर्णतया अविवादित जैवीय तरीका अभी भी विकसित होना शेष है?