Saturday 6 March 2010

नर नारी समानता का अगला पाठ

हमने नर नारी समानता के कतिपय मूलभूत समाज जैविकीय पहलुओं को पिछले दिनों जांचा परखा .अब आगे . पश्चिम से शुरू हुए नारीवादी आंदोलनों के बाद /बावजूद आज भी सारी दुनिया के कई हिस्सों में नारी पुरुष की " प्रापर्टी " और उससे निम्न दर्जे की मानी जाती है -और यह निश्चित ही दुखद है - आज भी नारी समानता के लिए किये गए जेनुईन प्रयासों का का प्रभाव नही दिखता -एक व्यवहारविद के लिए भी यह  ट्रेंड उलझन में डालने वाला है कि लाखो वर्षों तक चलने वाले मानव विकास के दौरान ऐसा तो कभी नहीं था कि नारी पुरुष से कभी हीनता की स्थिति में रही हो -हाँ कार्य /श्रम विभाजन की दृष्टि से उनमें बटवारा तो था मगर अपने क्षेत्रों में तो ये दोनों ही श्रेष्ठ और निष्णात थे-इसलिए ही कालांतर के चिंतकों द्वारा भी बार बार यह कहा गया कि मानव जीवन रूपी रथ में नर नारी की भूमिका पहिये के समान ही है -और इनमें कोई छोटा या बड़ा नहीं हो सकता ,दोनों  समान हैं .

हमारे आदिम कार्य विभाजन में पुरुष एक दैनिक और दिन भर का  माने दिहाड़ी गृह त्यागी आखेटक था मगर सामाजिक जीवन की धुरी के रूप में स्त्रियाँ ही थीं जो अपने घर परिवार की देखभाल -दोनों पहर के भोजन की व्यवस्था ,बच्चों का पालन पोषण और कबीलाई बसाहट की साफ़ सफाई में लगी रहती थीं -जहाँ आखेट प्रबंध के चलते  पुरुष की एक समय में केवल एक काम  पर ध्यान में बेहतरी होती गयी वहीं नारियां उत्तरोत्तर  एक समय में एक साथ ही कई कामों को समान गुणवता के साथ सँभालने में दक्ष होती चली आई हैं -वे मल्टी टास्कर हैं -और इसका अनुभव मुझे भी गाहे बगाहे शिद्दत के साथ होता रहा है -एक रोचक और अंतर्जाल जगत से ही उदाहरण दूं -जहाँ बहुत से पुरुष जिसमें मैं भी सम्मिलित हूँ ही अंतर्जाल पर मानो टांग तोड़ कर बैठे रह जाते हैं -ब्लागिंग में मुब्तिला हो जाने पर उन्हें कुछ और नहीं सूझता (हाऊ पूअर न ? ) ठीक उसी समय अंतर्जाल प्रेमी नारियां एक साथ ही कई काम निपटाती रहती हैं -घर परिवार की देखभाल -खाना पीना ,चाय पानी ,आदि आदि -हमें उनसे चैटिंग करते समय भी यह अंदाजा नही रहता के उधर क्या क्या पापड बेले जा रहे हैं या कौन सी खिचडी पक रही है-मेरी तो एक महिला मित्र से इसे लेकर तक झक भी  होती रहती है मगर मैं मंद मंद मुस्कराता भी रहता हूँ उनके इस नैसर्गिक और प्रणम्य क्षमता को जनता जो हूँ -प्रगटतः कहने या प्रशंसा करने की आदत नहीं है इसलिए कहता नहीं .जाहिर हैं नारी इस मामले में तो निश्चित ही बेजोड़ है कि वह एक समय में एक साथ कई समस्याओं को संभाल सकती है -टैकल कर सकती है पुरुष ऐसी क्षमता अब सीखने लग गया है पर नारी की तुलना में बहुत कमजोर है .अ पूअर सोल ! हा हा !

नर नारी पारस्परिक व्यक्तिव का यह अंतर आज भी बहुत स्पष्ट और प्रामिनेंट है .सांस्कृतिक विकास के पहले एक लिंग दूसरे  पर हावी रहा  हो ऐसा तो कतई नहीं था  . वे अस्तित्व की रक्षा के लिए एक दूसरे पर हमेशा निर्भर रहे .मानव उभय  लिंगों में एक यह आदिम संतुलन तो रहा ही है कि वे समान रहे मगर अलग अलग से ...

मगर फिर ऐसा क्या होता गया कि नारी पर पुरुषों का अनुचित अधिपत्य शुरू हुआ ? कब से और क्यूं ??यह चर्चा हम आगे के लिए मुल्तवी करते हैं .....