Wednesday 26 May 2010

जिन्हें आपके सहानुभूति की दरकार है!

इन दिनों पेटा- 'पीपल फार द एथिकल ट्रीटमेंट्स ऑफ़ एनिमल्स ' जीव जंतुओं के प्रति मानवीय सहानुभूति को जुटाने में एक रायशुमारी में लागा हुआ है -मेरे पास  भी उनकी चिट्ठी आई है .दुनिया भर में वैज्ञानिक प्रयोगों के नाम पर  ,सौन्दर्य प्रसाधनों की जाँच के नाम पर और शिकार की प्रवृत्ति के शमन हेतु  जानवरों पर आज के कथित सभ्य मनुष्य द्वारा भी कम जोर जुल्म नहीं ढाए जा रहे हैं .ब्रिटेन में लोमड़ी का शिकार ,जापान द्वारा व्हेल , औए सील जैसे स्तनपोषियों का कत्ले आम ऐसी ही नृशंस घटनाएँ हैं .आज भी काम काज के सिलसिले पर जानवरों के प्रति सहानुभूति न दिखाकर उनसे अमानवीयता की बर्बर सीमा तक जाकर कार्य लिया जाता है -बैलगाड़ियों और भैसागाडियों को देखकर आपको ऐसा जरूर लगा होगा.


कई लोग देखा देखी जानवरों को पाल तो लेते हैं मगर उनका ध्यान नहीं रखते ..कई पालतू कुत्ते भी बदहाली की दशा में दिखते हैं .यह तो अच्छा हुआ कि अब ज्यादातर बंदूकों की जगह जानवरों को कैमरों से शूट किया जा रहा है मगर फिर भी इनके प्रति जन जागरूकता और सहानुभूति के लिए पता निरंतर प्रयास में जुटी एक वैश्विक चैरिटी संस्थान है .मैंने इसका सदस्य बनने का निर्णय लिया है और एक हजार रुपये की दान राशि इन्हें भेज रहा हूँ -इसके एवज में ये अपनी पत्रिका की एक वर्ष की सदस्यता भी देंगें .

मेरी सिफारिश है आप भी इस अभियान से जुड़े और जानवरों के प्रति सहानुभूति का जज्बा कायम करने में अपना सहयोग दें! मगर एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि पेटा द्वारा जानवरों के प्रति नैतिकता की दुहाई को लेकर ऐसे चित्रों का प्रमोशन कही आपत्तिजनक तो नहीं ?

Saturday 22 May 2010

विधाता का धंधा किया बन्दे ने मंदा :क्रैग वेंटर ने प्रयोगशाला में बनाया संश्लेषित जीवाणु -....

 मनुष्य ने एक बार फिर विधाता को ललकार दिया है ...भले  ही कहते हों कि कर्ता का मन  कुछ और है विधना का कुछ और ..मगर आदमी भी कहाँ मानने वाला जीव है ....क्रैग वेंटर और उनकी टीम ने वर्षों की लगन के बाद आखिर प्रयोगशाला में एक संश्लेषित जीवन को सृजित कर  लेने में सफलता पा ली है .यह कुदरत से एक अलग करिश्मा है ..आधुनिक विश्वामित्र एक नई श्रृष्टि को रचने को उद्यत हो उठे हैं .यह है वह शोध आलेख के संक्षिप्ति का मूल आलेख जो विश्वविख्यात  साईंस पत्रिका के २० मई २०१०  के आनलाईन संस्करण में प्रकाशित हुआ है -

Creation of a Bacterial Cell Controlled by a Chemically Synthesized Genome

Daniel G. Gibson,1 John I. Glass,1 Carole Lartigue,1 Vladimir N. Noskov,1 Ray-Yuan Chuang,1 Mikkel A. Algire,1 Gwynedd A. Benders,2 Michael G. Montague,1 Li Ma,1 Monzia M. Moodie,1 Chuck Merryman,1 Sanjay Vashee,1 Radha Krishnakumar,1 Nacyra Assad-Garcia,1 Cynthia Andrews-Pfannkoch,1 Evgeniya A. Denisova,1 Lei Young,1 Zhi-Qing Qi,1 Thomas H. Segall-Shapiro,1 Christopher H. Calvey,1 Prashanth P. Parmar,1 Clyde A. Hutchison, III,2 Hamilton O. Smith,2 J. Craig Venter1,2,*
We report the design, synthesis, and assembly of the 1.08-Mbp Mycoplasma mycoides JCVI-syn1.0 genome starting from digitized genome sequence information and its transplantation into a Mycoplasma capricolum recipient cell to create new Mycoplasma mycoides cells that are controlled only by the synthetic chromosome. The only DNA in the cells is the designed synthetic DNA sequence, including "watermark" sequences and other designed gene deletions and polymorphisms, and mutations acquired during the building process. The new cells have expected phenotypic properties and are capable of continuous self-replication.
1 The J. Craig Venter Institute, 9704 Medical Center Drive, Rockville, MD 20850, USA.
2 The J. Craig Venter Institute, 10355 Science Center Drive, San Diego, CA 92121, USA.

* To whom correspondence should be addressed. E-mail: jcventer@jcvi.org

Received for publication 9 April 2010. Accepted for publication 13 May 2010.
ध्यान दीजिये इस टीम में तीन भारतीय हैं और क्रैग की विनम्रता देखिये उन्होंने अपना नाम सबसे अंत में रखा है .भारतीय मूल के शोधार्थी हैं संजय वाशी ,राधा कृष्णकुमार और प्रशांत पी पार्मर .आईये आपको अंगरेजी में छपी  इस संक्षिप्ति का भी सार बता दें -वो कहते हैं न 'सार सार को गहि रहे थोथा देय उडाय' वैसे यहाँ थोथा है भी नहीं -सॉलिड रिसर्च है बाबा ....इस भारी भरकम टीम (मैंने गिना २५ ,आप भी ट्राई करें !)का कहना है कि उन्होंने "रासायनिक संश्लेषित जीनोम द्वारा नियंत्रित जीवाणु कोशा का सृजन " कर दिखाया है -.
हम 1.08-Mbp Mycoplasma mycoides JCVI-syn1.० जीवाणु की सरंचना ,संश्लेषण और संयोजन की घोषणा करते हैं जिसकी  डिजिटलीकृत जीनोम सीक्वेंस सूचना -  संस्थापन  एक दूसरे जीवाणु Mycoplasma capricolum  में करते हुए एक नए
Mycoplasma mycoides  जीवाणु  का सृजन किया गया है जो संश्लेषित गुणसूत्र द्वारा नियंत्रित है .इस नए सृजित जीवाणु का "डी एन ऐ  संरचित और  संश्लेषित  है  और वाटरमार्क से युक्त भी  ..और यह  पुन्रुद्भवन  की क्षमता भी रखता है  "  
 इस तरह जैविकी के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू हो गया है ! भले ही इस पर बहुत वाद विवाद होगा मगर मित्र जीवाणुओं की फ़ौज और उनसे औषधियों का दोहन अब आसान हो जायेगा ! समुद्रों के तेल संदूषणों और कई अन्य प्रदूषणों को दूर करने में कृत्रिम जीवाणुओं की फ़ौज कारगर होगी ! अजोन परत की पुनरुस्थापना में  भी ये जीवाणु मददगार होगें ! बस इनके रोगाणु में उत्परिवर्तित हो जाने के खतरे हैं जिनका कोई आतंकवादी संगठन भी बेजा इस्तेमाल कर सकता है .हमें इन जीवाणुओं से जुड़े सुरक्षा के मानकों को बहुत ऊंचा रखना होगा !
बहरहाल हम इस कृत्रिम  जीवाणु युग का स्वागत करते हैं ..!

Saturday 15 May 2010

एक करामाती गोली के हुए पचास साल.....एक चिट्ठी भावी निरुपाय निरुपमाओं के नाम ....!

मारग्रेट सैंगर  -गर्भ निरोध आन्दोलन की जन्मदाता
गर्भ निरोधक गोली के पचास साल इसी ९ मई को पूरे हो गए ....इनोविड नाम था उस पहली गर्भ निरोधक गोली का जिसे अमेरिका के फ़ूड एंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन ने ९ मई १९६० को हरी झंडी दिखाई थी ....यह एक क्रांतिकारी घटना थी ....और यह परिणाम एक जुनूनी महिला के  हठयोगी परिश्रम का था जिसने नारी को देह के बंधन से आजादी दिला दी थी ....वह फौलादी व्यक्तित्व की स्वामिनी महिला थीं कोर्निया न्यूयार्क में १८७९ में एक कैथोलिक परिवार में जन्मी मारग्रेट सैंगर जिनकी माँ अपने अट्ठारवें प्रसव के दौरान ही ५० वर्ष की अल्पायु में चल बसी थीं.. सैंगर ने अपने बाप से साफ़ साफ़ कहा कि उन्होंने माँ की जांन  ले ली थी ....सैंगर ने संकल्प लिया कि वे नारी जाति को अनचाहे मातृत्व के बोझ से मुक्त किये बिना चैन से नहीं सोयेगीं .....उन्होंने ही  गर्भ निरोध (बर्थ कंट्रोल ) का नारा बुलंद किया  -और अपने अभियान को तेज  करने के लिए वीमेन रिबेल नाम की पत्रिका निकाली ....लेकिन तत्कालीन कानूनों के अंतर्गत वे गिरफ्तार हुईं ,जमानत लेकर देश से बाहर गयीं मगर फिर जल्दी ही लौट आयीं और अमेरिका का पहला फैमली प्लानिंग क्लीनिंग ब्रूकलिन में खोला ..फिर गिरफ्तार हुईं ...३० दिन जेल में रहीं ...मगर फौलादी इरादों वाले जेल की सीखचों से कब  डरते हैं भला ...

सैंगर १९१७ में एक और क्रांतिकारी नारीवादी महिला कथेरायींन डेक्सटर मैक्कार्मिक से मिलीं जो मैसाच्युसेट्स इंस्टीच्यूट आफ टेक्नोलोजी से दूसरी महिला ग्रेजुयेट थीं ..इस जोड़ी  ने मिलकर एक  शोधकर्ता जांन  रॉक और ग्रेगरी पिंकस को मदद देकर नारी हारमोन प्रोजेस्टेरान की गोलियों के रूप में गर्भनिरोधक गोली मानवता को सौप दी ..आज यह  सब एक इतिहास बन चुका है ..एक ऐसी गोली जिसने मातृत्व के चेहरे की कालिमा हटा दी थी अब बाजार  में थी ....चर्च ने और अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने भी गर्भ निरोध  के अपने फैसले बदल दिए..
एनोविड -छोटी सी गोली के बड़े गुन
टाइम मैगजीन के इसी माह के एक अंक ने इस बड़ी घटना को अपनी कवर स्टोरी बनाया है ..उसके अनुसार ४६००० महिलाओं पर किये गए शोध यह बताते हैं कि जो महिलाए गोली लेती रही हैं वे दीर्घायु हैं और उन्हें ह्रदय और कैंसर की बीमारियाँ अपेक्षाकृत कम हुई है ....आज दुनिया में १० करोड़ महिलायें गोली का सेवन कर रही हैं .आज की कम सांद्रता वाले डोज की गोलियां पूरी तरह से निरापद हैं ..मगर अफ़सोस है कि आज  भी इस करामाती गोली को लेकर तरह तरह की निर्मूल शंकाएं  की जाती हैं ....जो लोग इस गोली पर अंगुली उठाते हैं .और यह कहते हैं कि इसके चलते अनेक यौन व्यभिचार और स्वच्छन्दता समाज  में फ़ैली वे भूल जाते हैं कि इस गोली के पहले भी वे समाज में विद्यमान थे..व्यभिचारी स्त्री इस गोली को न भी खाकर व्यभिचारी ही रहती/रहेगी  ....फिर दोष इस गोली को क्यूं ?

 टाईम आमुख-३ मई २०१० 

अपने यहाँ  यौनिक जागरूकता का आलम यह है कि  देश की  राजधानी की एक अच्छी खासी पढी लिखी  और आधुनिक मीडियाकर्मी अविवाहित मातृत्व का बोझ लेकर एक त्रासदपूर्ण और ह्रदय विदारक घटनाक्रम में इस दुनिया से चल बसी और     लापरवाही का नतीजा एक अजन्मे अबोध के   मौत का भी कारण बनी ...इस गोली के पचास साल होने पर यह एक विडम्बनापूर्ण घटना ही तो कही  जायेगी ....काश निरु पाय -माएं  इस गोली की सुधि भी रखतीं ...एक अमेरिकी महिला ने तो कहा कि मैं अपनी बेटी को सुबह के नाश्ते के दूध में  उसे बिना बताये गोली दे  देती हूँ ..एक अतिरिक्त सजगता    की तस्वीर यह है और एक तस्वीर है हमारी जिसने कितने ही   अभिभावकों ,माताओं -पिताओं को हिला कर रख दिया है .. आये दिन अजन्मे अबोधों  के साथ कितनी ही  निरुपाय निरुपमायें मौत को अभिशप्त हैं ....

आगे आईये ...बच्चों को इस गोली के बारे में एजुकेट कीजिये ....