Thursday 22 April 2010

हमारे मिथकों में जो नारायणास्त्र और ब्रह्मास्त्र चलने के वर्णनं हैं वे कहीं........

ईजाफज्जल्लाजोकुल्ल नामक ज्वालामुखी के चलते जो हाय तोबा मची हुई है वह उन ज्वालामुखियो के आगे कुछ भी नहीं है जिनसे मानव प्रजाति के अस्तित्व के सामने ही संकट उत्पन्न हो गया था -कुछ सौ वर्षों पहले १७८३ में लाकी नामक एक ज्वालामुखी ने यूरोप में ही भयानक तबाही मचाई थी - यह पूरे आठ महीनो तक लगातार लावा उगलता रहा,फसलों का सत्यानाश तो हुआ ही धूएँ की काली चादर ने सूरज की रोशनी रोक ली , तापक्रम गिरता गया ,मौसम बदल गया ,अंधेरी काली रात सी मानो धरती  पर पसर आयी ! ९००० लोग काल कवलित  हुए ,जंगलों में तेजाबी बरसातें शुरू हुईं तो थमी ही नहीं ,बच्चों की नाजुक हथेली पर फफोले उभर आये ,लाखो मवेशी मर गए -आगे भी इसी घटना ने  कई अकालों को जन्म दिया -कुछ लोग तो कहते हैं की इसी लाकी ज्वालामुखी ने ही फ्रेंच क्रान्ति की आधार शिला रखी ....

शायद अब तक का भीषणतम ज्यालामुखी विस्फोट माउंट टोबा (तोबा ...तोबा )  का था जो लभग ७५ हजार वर्ष पहले (भूगर्भीय टाईम स्केल पर तो मानो अभी कुछ देर पहले ही ) उत्तरी सुमात्रा में हुआ था -जिसने मनुष्य प्रजाति का ही लगभग सफाया  कर दिया था -यह वही समय था जब अफ्रीका से मनु समूहों का पलायन बस शुरू ही हुआ था और एक जत्था केरल तट से दक्षिणी भारत तक आ पहुंचा था और कुछ हजार की जनसंख्या तक जा पहुंचा गया था -नृ- वैज्ञानिक और पुरातत्व उत्खननों के अध्ययन बताते हैं की तब माउन्ट तोबा के भयावने विस्फोट से उडी ज्वालामुखीय राख की मोटी परत आज भी दक्षिण  भारत के कई उत्खनन स्थलों पर मिली है -लगता है उस समय भारी जनहानि हुयी थी और अफ्रीका से लेकर भारत और अन्य एशियाई देशों तक मनुष्य की संख्या बस कुछ सौ या हजार तक आ सिमटी थी ..
टोबा -तोबा .....तोबा!

टोबा के प्रकोप से ६८० मील की चौतरफा चट्टानें पिघलने  के पहले ही काली वाष्प बन गयीं और हजारो मील के दायरे में फ़ैल गयीं -अरबों जीव जंतु और लाखो मनुष्य इस ज्वालामुखी की चपेट में दम तोड़ गए .कहते हैं कि  कुल मिलाकर शायद ही ५००० भाग्यशाली लोग उस समय बच पाए थे जिनकी संताने हम हैं .कुछ वैज्ञानिकों का दावा है की केवल १००० के अस पास ही प्रजनन शील जोड़े बच रहे थे.....मतलब एक तरह से मानवता टोबा की विनाश लीला  में स्वाहा हो चुकी थी ..बस कुछ भाग्यशाली जो बच रहे आज की दुनिया उन्ही से आबाद है!

यह मानवता का सौभाग्य ही है कि टोबा जैसे परिमाण का ज्वालामुखी फिर नहीं फटा ,हाँ न्यूजीलैंड,ग्रेट ब्रिटेन  और इर्द गिर्द ज्वालामुखी का प्रकोप बना ही रहता है ...कभी कभी लगता है कि हमारे मिथकों में जो नारायणास्त्र और ब्रह्मास्त्र  चलने के  वर्णनं हैं वे कहीं टोबा से उपजी तबाही और ध्वंस के स्मृति शेष तो नहीं है!


Sunday 18 April 2010

ज्वालामुखी के धुएं ने मचाया कुहराम -सभी यूरोपीय उड़ाने रद्द!

आईसलैंड का एक  ज्वालामुखी ईजाफज्जल्लाजोकुल्ल   (Eyjafjallajokull) -(अजीब नाम है,लगता है अल्लाह का सबसे प्यारा ज्वालामुखी  है !) के फटने से कई यूरोपीय देश इससे निकलने वाले गर्द गुबार (ऐश -धुयें ) में डूब गए हैं -जिससे हवाई यातायात की कमर ही टूट गयी है -विदेश यात्रा पर गए हमारे प्रधानमन्त्री को रास्ता बदल कर आने को मजबूर होना पडा है .इसे ९/११ की घटना के बाद हवाई यातायात की सबसे बड़ी रुकावट के रूप में देखा जा रहा है -यूरोप के सभी देशों ने अपनी उड़ाने रद्द कर दी हैं -करीब ९ अरब डालर प्रतिदिन के नुकसान  की आशंका है .बहुत से यात्री बीच में फंसे हुए हैं और सहायता की गुहार लगा रहे हैं! बी बी सी की इस रिपोर्ट के वीडियो में गर्द और गुबार की आंधी  को तो देखिये !

यह ज्वालामुखी अभी पिछले माह ही सक्रिय हुआ है और भरी मात्रा में गर्द गुबार वातावरण में छोड़ रहा है .यह एक ग्लेशिअर का ज्वालामुखी  है जिसके सक्रिय हो जाने के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं और भयानक बाढ़ की आशंका भी उत्पन्न हो गयी है .इस गर्द गुबार में सिलिका -शीशा के तिनके हैं जो वायुयानों के इंजन को भारी नुक्सान पंहुचा सकते हैं -उनमें विस्फोट तक कर सकते हैं -विंड स्क्रीन को धूसर कर सकते हैं -ऐसा कहना है यूनिवर्सिटी कालेज सेंटर लंदन के हजार्ड रिसर्च सेंटर के बिल मैक्क्ग्येरे का जो इस विषय के विशेषज्ञ  हैं .

नार्वे,स्वीडन  ,फिनलैंड और डेनमार्क की सभी ४००० उड़ाने तो पहले ही रद की जा चुकी थीं अब और दूसरे  यूरोपीय देशों -फ्रांस स्पेन आदि ने भी  अपनी उड़ाने बंद करने का फैसला लिया है .एअर इण्डिया ने भी अपनी कई यूरोपीय  उड़ाने रद  कर दी हैं .कहा जा रहा है यह स्थिति अभी कम से कम एक सप्ताह तक तो रहेगी ही .एयर इंडिया ने यूरोप और उत्तरी अमेरिका के लिए अपने सभी उड़ानों को रद्द करने की अधिकारिक घोषणा आज यहां की।  दिल्ली और मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से विमान से यात्रा करने वाले हजारों घरेलू और विदेशी यात्री प्रभावित हुए हैं।ब्रिटेन के प्राकृतिक पर्यावरण अनुसंधान परिषद् का  एक वैज्ञानिक दल अपनी जांन  जोखिम में डाल कर डोनियर २२८ के हवाई सर्वेक्षण के जरिये इस गुबार के अध्ययन   में जुट गया है -नतीजे वायुयान यात्राओं को  बहाल करने में मददगार  हो सकते हैं .


यह सब तो किसी पर्यावरणीय  आतंकवाद से कम नहीं लगता -सोचिये जरा अगर आतंकवादी इन कुदरती कारकों को किसी तरह सक्रिय करने में सफल हो जायं तो कितना बड़ा कुहराम मच सकता है ..इस ओर भी सजग निगाह होनी चाहिए !
धुयें का एक दृश्य यहाँ पर है! 

ज्वालामुखी विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर पीटर सम्मंड यहाँ ऐसे ज्वालामुखियों के विस्फोट का विज्ञान समझा रहे हैं !

Wednesday 14 April 2010

कौतूहल का फंडा बना तोते का अंडा !

ताज्जुब की बात है आज दो खबरों में तोते को पिजरे में ही अंडा देने का समाचार सुर्ख़ियों में है और दोनों अलग अलग जगहों से ...एक खबर बनारस से है तो दूसरी समस्तीपुर बिहार से ....और दोनों ही दैनिक जागरण में ....अमूमन भारतीय तोते पिजरों में अंडे नहीं देते जो कि एक सामान्य अवलोकन की बात है .हाँ बुजेरिगर्स जिन्हें  आम तौर पर लोग लव बर्ड्स भी कह देते हैं (जबकि वे अलग प्रजाति हैं ) पिजरे में अंडे दे देते हैं और उनसे बच्चे भी निकलते हैं ..मगर तोते आम तौर पर पिजरे में अंडे नहीं देते ..जो बात मुझे हैरानी में डाल रही है वह यह है कि एक ही समय में यह अनहोनी सी घटना दो अलग अलग प्रान्तों में घटी है और दोनों ही रिपोर्ट एक ही समाचार पत्र समूह के दो अलग संस्करणों में छपी है ...समय एक है ,घटनाएं अलग अलग स्थानों की ...यह कोई प्लांटेड खबर तो नहीं है ?


कुछ लोगों को यह ताज्जुब लगता है बिना नर के मादा अंडे नहीं दे सकती -लोग भूल जाते हैं कि फ़ार्म के मुर्गी के अंडे बिना नरों के साहचर्य के ही निअकलते हैं -हाँ निषेचन के लिए नर का साथ रहना जरूरी है -अन्यथा मादा में अनिषेचित अंडे का अविकास सहज तौर पर होता है और समयानुसार उनके अंडे बाहर आ ही जायेगें -वे निषेचित हों या अनिषेचित ..मगर तोते को पिजड़े में अंडे देने का समाचार मैंने पहली  बार सुना तो इन्टरनेट खंगाला और पाया कि यह कोई नई घटना नहीं है -मगर एक ही कालावधि में दो सुदूर  जगहों पर ऐसी घटना का एक साथ घटना जरूर हैरानी में डालता है .यह तोतों का प्रजनन काल है तो यह संभव ही है और बदलते  पर्यावरण और पर्यावास के नाश होने के कारण अगर तोते पिजड़े में अंडे दे रहे हैं तो इसे पक्षी विज्ञानियों को एक नए नजरिये से देखना होगा ! क्या इनका प्रजनन व्यवहार बदल रहा है?