Sunday 18 January 2009

पुरूष पर्यवेक्षण : कैसे कैसी हस्तरेखाएँ !

शौक से कीजिये हस्त दर्शन
हथेलियों की आड़ी तिरछी रेखाओं ने सीधे साधे लोगों को खूब छकाया है और सदैव भाग्य वाचकों के रहमों करम पर छोडा है -मगर आज का विज्ञ संसार यह भली भाति जानता है की हाथों की रेखाओं और मनुष्य के भाग्य के बीच कोई सम्बन्ध नही है -और भाग्य जैसी कोई चीज होती भी है इसे लेकर विद्वानों में बड़ा मतभेद है .दरअसल मनुष्य का जीवन कई संयोगों ,मौकों को हासिल करने और गवाने का समग्र प्रतिफल होता है उसे हाथ की रेखाओं के सहारे समझना मूढ़ता ही है !इसलिए महज मनोविनोद के लिए तो हस्त रेखाओं का खेल खेला जा सकता है लेकिन इसे गंभीरता से लेने के अपने कई खतरे हैं -हाँ आनुवान्शिकीविदों ने कुछ तरह की बीमारियों में ख़ास हस्त रेखा पैटर्नों की जांच पड़ताल शुरू की है पर अभी कुछ भी अन्तिम रूप से तय नही हो सका है ।

मगर हस्तरेखा विशारदों ने एक फायदे का काम जरूर किया है .उन्होंने हस्तरेखाओं का इतना रोचक नामकरण किया है कि इनके नाम याद करना बेहद आसान हो गया ! कोई भी बस ज़रा सी स्मरण शक्ति के इस्तेमाल और ध्यान देने से छोटा मोटा हस्त ज्योतिषी बन सकता है .मनुष्य की हथेली / गदोरी (palm ) में मूलतः चार रेखाएं ही होती हैं -दायें बाएं दो आड़ी रेखाएं -एक तो ऊपर वाली ह्रदय रेखा और दूसरी नीचे वाली मस्तक /मस्तिष्क रेखा ! इसी तरह एक जोड़ी -यानि दो रेखाएं अन्गूंठे के नीचे से बेडे निकलती हैं .अन्गूंठे के पास वाली जीवन रेखा कहलाती है और बिल्कुल मध्य में ऊपर की ओर जाने वाली रेखा भाग्य रेखा कहलाती है .एक क्षीण सी स्वास्थ्य रेखा भी इसी के बगल बायीं ओर हो सकती है .वनमानुषों /दीगर कपि प्रजातियों में मस्तक रेखा और ह्रदय रेखाओं का अलग वजूद नही होता बल्कि केवल एक रेखा ही मिलती है -मजे की बात यह कि कुछ लोगों में भी वनमानुषों की ही तरह महज एक ही रेखा -सायिमियेन क्रीज होती है -इसका मतलब यह नही कि वे आज भी वनमानुषों के सरीखे हैं .

अंगूंठे की बारीक लाईने या अँगुलियों की बारीक लाईने जिन्हें नंगी आखों से बहुत साफ़ देखने में दिक्कत होती है टेंशन लाईन कहलाती हैं -क्योंकि इनसे ही तनाव के समय स्वेद ग्रन्थियों से निकलते हुए पसीने से हथेली भींग सी जाती है .पसीना इन बारीक उभारों को और भी फुला सा देता है जिससे हाथ में पकड़े हुए वस्तुओं की पकड़ और मजबूत हो जाती है -ऐसे व्यवहार का उदगम हमारे आदि पुरखों से है जिन्हें प्रायः तनाव की स्थितियों का सामना करना पड़ता था और हाथ के शस्त्र और आयुधों पर मजबूत पकड़ उनके लिए जीवन और म्रत्यु का प्रश्न बन जाता है ।
अंगुलिछाप यानि फिंगर प्रिंट आज भी पहचान का एक भरोसेमंद तरीका है जबकि अब तो डी एन ए फिंगर प्रिटिंग का ज़माना है -मगर फिंगर प्रिंट भी स्थाई होते है उन्हें अगर कांट छांट दिया जाय तब भी फिर से जम जाते हैं बिल्कुल पहली वाले ही पैटर्न पर -इसलिए फिंगर प्रिंटों को बदलना शातिर से शातिर अपराधी के लिए भी सम्भव नही है ! फिगर प्रिंटों में मुख्यतः तीन तरह का पैटर्न होता है .ज़रा अपने उँगलियों के पोरों को ध्यान से तो देखिये -धनुषाकार ,घेरा नुमा (लूप ) और भंवर्नुमा (whorl ) .ज्यादातर लोग मेरे जैसे घेरानुमा अन्गुलिछापों के वाहक होते हैं और यह शोधों से प्रमाणित है कि उनमें स्पर्शीय संवेदन शीलता दूसरे अन्गुलिछापों वाले लोगों से ज्यादा होती है ।

हथेलियों में से पसीने का निकलना एक ऐसी घटना है जो हमारे तनाव के स्तर को इंगित करती है ! रात में सोते समय हमारी हथेलियाँ सूखी रहती हैं .यानि आप तनाव मुक्त होते हैं -हथेलियों से पसीना निकलने ,उनके लगातार गीला बने रहने का मतलब है आप तनाव में हैं .ज्यादा तनाव की स्थितिओं में ये पसीने से तर बतर हो जाती हैं ।मुम्बई में आतंकवादी घटना के समय औरकुछ दिन उपरांत तक भी समूहों तक में समूचे देश में लोगों की हथेलियाँ पसीना पसीना होती पायी गईं थीं ! मैंने ख़ुद पड़ताल की थी ! अब हमारी हथेलियाँ तेजी से सूखती जा रही हैं तो क्या माना जाय कि अब युद्ध की कोई आशंका नही रह गयी है ?