Sunday 10 August 2008

पुरूष पर्यवेक्षण -एक देहान्वेषण यात्रा !(प्रस्तावना )

माईकेल एंजेलो की अमर कृति -पौरुष के प्रतीक डेविड
नारी सौन्दर्य यात्रा के समापन तक आते आते इस विषय पर अन्य बहस मुहाबिसों के साथ ही मुझसे नर नख- शिख वर्णन के लिए भी आग्रह किया जाने लगा. यह तर्क दिया गया कि 'विज्ञान की दृष्टि में चूंकि नर नारी में विभेद करना उचित नहीं इसलिए नर सौदर्य शास्त्र की चर्चा भी होनी चाहिए ' .इस मत की पुरजोर वकालत करती लवली जी ने आख़िर मुझे इस लेखमाला के लिए प्रेरित कर ही दिया .
जब साहित्य -सिनेमा में फरमाईशों और उनके पूरा किए जाने की समृद्ध परम्परा रही है तो फिर विज्ञान की दुनिया जहाँ ज्ञान विज्ञान के बांटने की परिपाटी वैसे भी रही है -इस फरमाईश को न पूरा करना मेरे कर्तव्यच्युत होने सरीखा ही है -अस्तु ,यह नयी शोध यात्रा ,मानव देह की पुरान्वेषण यात्रा ......आत्म देहान्वेषण यात्रा ....इस लेखमाला को आप भी अपनी ओर से कोई और भी शीर्षक सुझा सकते हैं .मैं इसे पुरूष सौन्दर्य यात्रा कहने में किंचित संकोच कर रहा हूँ क्योंकि फिर मेरे ऊपर कुछ ओर आरोप लगने लगेंगे -और देश का क़ानून मैं क्या, किसी के भी लिए भी शिरोधार्य होना चाहिए ......
वैसे भी पुरुषों के 'नख शिख 'सौदर्य वर्णन' की कोई परिपाटी मेरी जानकारी में नही है -और अपनी ओर से यह नामकरण कर मैं विवादों को आमंत्रित नही करना चाहता .लेकिन यह एक रोचक तथ्य है कि समूचे जंतु जगत में मादा के मुकाबले नर प्रत्यक्षतः अधिक चित्ताकर्षक लगता है - मोरिनी के बजाय मोर को देखिये , मुर्गी के बजाय मुर्गे को देखिये ,अनेक खग मृग में नर ही आकर्षक दीखते हैं .क्या मनुष्य के मामले में भी ऐसा ही है ?यह मुद्दा भी चिंतन की दरकार रखता है .मगर विज्ञान की तटस्थता के लिहाज से यह निर्णय करेगा कौन ? वही न जो न नारी हो और और न नर -क्या किन्नर ?
नारी सौदर्य के अपने सद्य प्रकाशित ब्लॉग पोस्टों में मैंने नारी अंग प्रत्यंग की चर्चा को सौदर्य चर्चा में इसलिए तब्दील कर दिया था कि नख शिख नारी सौदर्य वर्णन की हिदी साहित्य में एक परम्परा रही है -बस उसी की विरासत को यथाशक्ति अल्पबुद्धि कायम रखने तथा वैज्ञानिक ज्ञान की रुचिकर प्रस्तुति के लिहाज से और कुछ अपने व्यक्तिगत आग्रहों के चलते भी वह एक सौन्दर्य बोध यात्रा बनती गयी .......जिस पर अनुचित कम उचित ज्यादा वाद विवाद भी हुआ और शायद सही परिप्रेक्ष्य में उस पूरी यात्रा कथा को न लेने के कारण भी लोगबाग सशंकित से दिखे .....
मैं यह पुनः पुनरपि स्पष्ट कर दूँ- यहाँ केवल विज्ञान की वार्ता हो रही है कोई प्रायोजित और पूर्वाग्रहित आयोजन नही है यहाँ ,और न कोई लक्षित फलसफा ......हाँ पिछली कुछ कमियों को जिसे विद्वान् ब्लॉगर मित्रों ने चेताया है मैं ध्यान रखूंगा -मसलन वैज्ञानिक शोध सन्दर्भों का यथा सम्भव लिंक भी देने का प्रयास करूंगा .
मुझ पर नर नारी में पक्षपात कराने का आरोप न झेलना पड़े इसलिए भी यह पुरूष प्रसंग जरूरी हो गया है
इहाँ न पक्षपात कछु राखऊँ ,वेद पुरान संत मत भाखऊँ ...........
पुरूष के अंग प्रत्यंग का यह व्यवहार शास्त्रीय [ethologial ] अध्ययन भी दरअसल एक देहान्वेषण भ्रमण /पर्यटन शोध यात्रा ही है .निजी तौर पर एक ब्लॉगर के रूप में कहूं तो यह मेरे लिए भी एक आत्मान्वेषण यात्रा है -
इस शोध यात्रा की भी अध्ययन पद्धति [methodology ] वही है - सिर से लेकर पैरों तक अंग अंग प्रत्यंग का पर्यवेक्षण ! बालों से शुरू होकर आगे के सभी देह स्थल पडावों पर ठहरती सुस्ताती यह यात्रा आगे बढेगी -मगर इस बार द्रुत नहीं विलंबित गति से .......इस बीच साईब्लाग विज्ञान के अन्य क्षेत्रों को भी कवर करता रहेगा और पुरूष पर्यवेक्षण पर मेरा अध्ययन भी अपडेट होता रहेगा .
आईये शुरू करते हैं पुरूष की देहान्वेषण यात्रा ----आप बिना टिकट ही इस यात्रा का शुरू से ही मुसाफिर बन लें --आईये आईये स्वागत है .......संकोच न करें ......पुरूष और नारी सभी ब्लॉगर मित्रों के लिए यहाँ कोई पक्षपात नहीं ..दोनों के लिए एक ही कम्पार्टमेंट हैं .......
यह पूरी लेखमाला फर्मायिश्कर्ता को ही समर्पित है -इदं मम .........