Monday 14 July 2008

"मैं शर्म से हुई लाल ...."बात है गालों की लाली की ...

चित्र सौजन्य :द इन्डियन मेक अप दिवा
नारी के नरम चिकने गाल मासूमियत और सुन्दरता की सहज अभिव्यक्ति हैं। ऐसा इसलिए कि बच्चों के से उभरे नरम गालों के गुण नारी में यौवन तक बने रहते हैं और सहज ही आकिर्षत करते हैं। प्रेम विह्वलता के सुकोमल क्षणों में गालों का रक्त वर्णी हो उठना, उनका प्रणय सखा द्वारा तरह-तरह से स्पर्श आलोड़न उनके एक प्रमुख सौन्दर्य अंग होने का प्रमाण है

´´ मैं शर्म से हुई लाल´´ में दरअसल यह गालों की ही लाली है जो एक विशेष मनोभाव को गहरी और सशक्त अभिव्यक्ति देती है। गालों के रक्त वर्ण हो उठने को एक तरह का यौन प्रदर्शन (सेक्सुअल डिस्प्ले) माना गया है। यह कुंवारी सुलभ अबोधता (विरिजिनल इन्नोसेन्स) का खास लक्षण है। ``ब्लशिंग ब्राइड´ के नामकरण के पीछे भी यही दलील दी जाती है।

व्यवहार विज्ञानियों का तो यहाँ तक कहना है गालों की लाली कुछ हद तक नारी के अक्षत यौवना होने का भी संकेत देता है। सम्भवत: यही कारण था कि प्राचीन गुलाम बाजारों में उन लड़कियों की कीमतें ज्यादा लगती थी जिनकी गालों पर (शर्म की) लाली अधिक देखी जाती थी। चेहरे के मेकअप में गालों को `रूज´ से सुर्ख करने की पीछे `विरिजिनल इन्नोसेन्स´ को ही प्रदर्शित करने की चाह होती है।

बहुत सी आधुनिकाओं के वैनिटी बैग में नित नये कास्मेटिक उत्पादों की श्रेणी में कई तरह के `ब्लशर्स´ भी शामिल हैं जो बनावटी तौर पर ही सही गालों को रक्तवर्ण बना देते हैं। सामाजिक मेल मिलापों और पार्टियों में इन `ब्लशर्स´ के जरिये अधिक वय वाली नारियां भी सुकुमारियों (टीनएजर्स) सरीखी दिखने का स्वांग करती है, अपना `सेक्स अपील´ बढ़ा लेती हैं।

गालों पर तिल होने की भी अपनी एक सौन्दर्य कथा है। मिथकों के अनुसार सौन्दर्य की देवी वीनस के मुंह पर भी एक जन्मजात दाग (सौन्दर्य बिन्दु) है। हिन्दी साहित्य की नायिका चन्द्रमुखी (दाग सहित) है ही। यदि ऐसा है तो फिर भला कौन नारी वीनस या चन्द्रमुखी दिखने से परहेज करेगी। लिहाजा गालों की सुन्दरता में एक धब्बे का स्थान भी ध्रुव हो गया है। नारी मुख का आधुनिक मेक अप शास्त्र `गाल पर तिल´ होने की महत्ता को बखूबी स्वीकारता है- यह काम मेकअप पेिन्सल बड़ी ही खूबसूरती से अन्जाम देती है ,

गाल पर धब्बों के बढ़ते फैशन ने अट्ठारहवीं सदी के आरम्भ में ही एक तरह से राजनीतिक रूख अिख्तयार कर लिया था जब यूरोप की दक्षिणपन्थी महिलाओं ने दायें गाल तथा वामपंथी महिलाओं ने बाये गाल को कृत्रिम तिल से अलंकृत करना आरम्भ किया था। रंगों के अलावा गालों के आकार की भी बड़ी महिमा है। यूरोप में गालों में गड्ढे़ (डिम्पल) को सौन्दर्य की निशानी माना जाता है- यहाँ तक कि इसे ईश्वर की अंगुलियो की छाप के रूप में देखा जाता है। ``ए डिम्पल इन योर चीक/मेनी हर्टस यू बिल सीक´´ गीत-पंक्ति गाल में गड्ढे की महिमा को बखाना गया है .गालों के जरिये मन के कुछ सूक्ष्म भाव भी प्रगट होते हैं
` मुंह फुलाने´´ की नायिका (मानिनी ) की अदा से भला कौन रसिक (प्रेमी) अपरिचित होगा? रूठने और मनुहार के बीच गालों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा ली है।