Monday 9 June 2008

काकभुसुंन्डी के कारनामे !

अरे ई का कर रहे हैं जी ?
जंतुओं में बुद्धि के स्तर को जांचने का एक पैमाना है उनके द्वारा औजारों के प्रयोग की कुशलता.इसमें हमारे चिर परिचित काकभुसुन्डी जी को महारत हासिल है .इनसे जुडी सारी दंत कथाएंऔर आख्यान निर्मूल नहीं हैं .यह अकारण ही नही है कि ये महाशय रामचरित मानस में एक केन्द्रीय भूमिका में हैं -दरसल उत्तर काण्ड को काकभुसुन्डी काण्ड भी कह सकते हैं -दत्तात्रेय ने २४ पशु पक्षियों को अपना गुरु माना तो बाबा तुलसी ने अपावन ,काले कलूटे ,क्रूर कर्मा कौए को काकभुसुन्डी के चरित्र में अमरत्व प्रदान कर दिया .कारण ? वे प्रकृति प्रेमी होने के नाते यह जानते थे कि बुद्धि और चातुर्य में कौए की बराबरी कोई और नही कर सकता .कई साहित्यकारों ने भी काक वर्णन में काफी उदारता बरती है .सत्यजीत राय की 'द क्रो' कहानी पढने लायक है .भक्ति और श्रृंगार साहित्य भी कौए की करामातो से भरा पडा है .'काग के भाग के क्या कहिये, 'नकबेसर कागा ले भागा 'आदि आदि .

कौए के व्यवहार अध्ययन को रूसी वैज्ञानिकों ने प्राथमिकता दी ..करीब ४० वर्ष पहले ही एक रूसी व्यवहार विज्ञानी ने पता लगा लिया था कि कौए गिनती गिन सकते हैं -जंगल के एक शिविर में पाँच वैज्ञानिक थे ,एक कौआ वहाँ खाने की ताक झाक में तभी जाता था जब उसे यह पक्का इत्मीनान हो जाता था कि सभी पाँचों उस शिविर से बाहर चले गए हैं .उसे तरह तरह से भरमाने की कोशिश की गयी पर उसकी गिनती हमेशा सही रहती थी .कौए और घडे की कहानी में कुछ भी अतिरंजना नही है .अभी हाल के कई अध्ययनों में इनके बुद्धिजनित औजार के प्रयोगों पर व्यापक चर्चा हुयी है .आकलैंड विश्वविद्यालय के जाविन हैण्ड और आक्स फोर्ड के एलेक्स कसेलिंक ने अपने शोध पत्रों में कौए के बारे में यह बताया है कि वह औजारों के कई प्रयोगों के मामले में निष्णात है -यदि बोतल में से खाद्य सामग्री सीधे तार के टुकडे से नही निकल रही है तो उसे मोड़ कर उस सामग्री के निकालने में उसे ज़रा भी देर नही लगती .ये शोध अभी जारी हैं ।

कौए के अलावा कुछ समुद्री पक्षी घोंघे और शंख को पहले पत्थर के टुकडे पर पटकते है जिससे उनके कवच टूट जायं .चिपांज़ी और ओरागुतान तो और भी बुद्धिजनित व्यवहार दिखाते हैं .इस पोस्ट को लिखने के दौरान एक कौए महाशय लगातार अपने कर्कश आवाज में कुछ कहे जा हैं मानो अपनी पोल न खोलने को आगाह कर रहे हों .इसलिए अब विराम !